उत्तराखंड Story of hanseshwar math uttarakhand

देवभूमि का हंसेश्वर मठ..250 साल से जल रही अखंड धूनी, भभूत से दूर होती हैं बीमारियां

आज हम आपको देवभूमि के ऐसे मठ की कहानी बता रहे हैं, जहां की भभूत वास्तव में चमत्कारिक मानी जाती है।

उत्तराखंड: Story of hanseshwar math uttarakhand
Image: Story of hanseshwar math uttarakhand (Source: Social Media)

: देवभूमि उत्तराखंड तपस्वियों की तपस्थली है। इस धरा के जादू से चमत्कृत होकर सदियों से महान तपस्वी इस जगह को अपनी साधना के लिए चुनते रहे हैं। साधकों का ऐसा ही एक मठ पिथौरागढ़ में स्थित है, जिसे श्रद्धालु हंसेश्वर मठ के नाम से जानते हैं। पिथौरागढ़ के इस मठ में पिछले ढाई सौ सालों से अखंड धूनी जल रही है, जिसकी भभूत लेने के लिए यहां श्रद्धालुओं की कतार लगी रहती है। इसके पीछे मान्यता है कि यहां की भभूत से कई बीमारियों का इलाज होता है। बाल रोग, त्वचा के रोग और मानसिक रोगों से पीड़ितों को ये भभूत दी जाती है। खास बात ये है कि मकर संक्रांति के मौके पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हिस्सा लेने के लिए आस-पास के गांवों के हजारों लोग यहां पहुंचते हैं। हंसेश्वर मठ भारत-नेपाल सीमा पर महाकाली नदी के किनारे स्थित है।

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इसका इतिहास सोलहवीं सदी से शुरू माना जाता है। कहा जाता है कि काली नदी के सूरज कुंड में महाकाल गिरि ने भगवान शिव के हंसेश्वर रूप की पूजा की थी, जिस वजह से इस जगह का नाम हंसेश्वर पड़ा। मठ की भूमि पर होने वाले चमत्कारों से प्रभावित होकर अस्कोट के राजा पुष्कर पाल ने यहां मठ की स्थापना के लिए जमीन दान में दी थी। 1890 में दशनामी अखाड़े के सन्यासियों के नाम जमीन का वैध पट्टा जारी किया गया, तब से दशनामी अखाड़ा ही इस जमीन की मालगुजारी देता आ रहा है। मानसखंड में भी इस जगह का उल्लेख मिलता है। मकर संक्रांति और महाशिवरात्रि पर यहां स्थित सूरजकुंड में स्नान करने का विशेष महत्व है। मठ में आने वाले भक्त यहां से भभूत लेकर जाते हैं। माघ महीने में यहां महास्नान होता है। ये परंपरा सदियों से चली आ रही है।