उत्तराखंड DOONAGIRI MANDIR ALMORA DWARAHAAT

देवभूमि की मां दूनागिरी..यहां आज भी मिलते हैं रामायण और महाभारत काल के प्रमाण

शक्तिपीठ दूनागिरी...कहा जाता है कि देवभूमि के इस देवस्थान में रामायण और महाभारत काल के प्रमाण आज भी मिलते हैं। पढ़िए

उत्तराखंड न्यूज: DOONAGIRI MANDIR ALMORA DWARAHAAT
Image: DOONAGIRI MANDIR ALMORA DWARAHAAT (Source: Social Media)

: ये बात सच है कि देवभूमि दुनियाभर के लिए आस्था और विश्वास का संगम है। यहां कदम कदम पर मौजूद देवस्थानों की अद्भुत कहानियां आज भी दुनिया को हैरान करती हैं। आज हम एक ऐसे मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं , जिसके बारे में कहा जाता है कि जम्मू के बाद मां वैष्णवी केवल यहां शक्तिपीठ के रूप में विराजमान हैं। जी हां हम बात कर रहे हैं दूनागिरी मंदिर की…उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट बाजार से करीब 14 किमी दूर मंगलीखान बस स्टेशन से करीब 500 सीढ़ियां चढ़कर भक्त दूनागिरि माता के भव्य मंदिर में पहुंचते हैं। मान्यता है कि महाभारत काल में द्रोणाचार्य ने इसी पर्वत पर तपस्या की। ये भी कहा जाता है कि त्रेता युग में लंका युद्ध के दौरान जब लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे तो हनुमान संजीवनी बूटी के लिए द्रोणगिरि पर्वत को उठा लाए थे। इस पर्वत का एक टुकड़ा यहीं गिरा था, इसलिए इस स्थान को द्रोणागिरि पर्वत भी कहा जाता है। ये बात बद्रीदत्त पांडे द्वारा पुस्तक ‘कुमाऊं का इतिहास’ में भी दर्ज है। साढ़े सात हजार फीट की ऊंचाई पर मौजूद इस मंदिर में देश ही नहीं विदेशों से भी श्रद्धालु मां पहुंचते हैं।

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यहां शिव-पार्वती की प्राचीन मूर्तियां, ज्योर्तिलिंग और नंदी की मूर्तियां स्थापित हैं। कहा जाता है कि 1238 ईसवी में कत्यूर वंशीय राजा सुधारदेव ने मंदिर का लघु निर्माण कर मूर्ति स्थापित की। हिमालय गजिटेरियन के लेखक ईटी एडकिंशन के अनुसार इस मंदिर के होने का प्रमाण सन् 1181 शिलालेखों में मिलता है। पुराणों उपनिषदो व इतिहासकारों ने दूनागिरी की पहचान माया-महेश्वरी या प्रकृति-पुरुष और दुर्गा कालिका के रुप में की है | इसी पर्वत पर स्थित भगवान गणेश के नाम से एक चोटी का नाम गणेशाधार पूर्व से प्रचलित है। देवी पुराण के अनुसार अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने युद्ध में विजय तथा द्रोपती ने सतीत्व की रक्षा के लिए दूनागिरी की दुर्गा रुप में पूजा की थी। स्कंदपुराण के मानसखंड द्रोणाद्रिमहात्म्य में दूनागिरी को महामाया, हरिप्रिया, दुर्गा के अनूप विशेषणों के अतिरिक्त वह्च्मिति के रुप में प्रदर्शित किया गया है | यहां प्राकृतिक रूप से निर्मित पिंडिया माता भगवती के रूप में पूजी जाती है। मंदिर में अखंड ज्योति हमेशा जलती रहती है, मान्यता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही कई मनोकामनाएँ पूर्ण हो जाती हैं।