उत्तराखंड देहरादूनJwalpa devi temple in Uttarakhand

देवभूमि का मां ज्वाल्पा देवी सिद्धपीठ, जहां इंद्रदेव को पति रूप में पाने के लिए शचि ने किया था तप

सिद्धपीठ ज्वाल्पा धाम का धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व भी है, केदारखंड में भी इस सिद्धपीठ का जिक्र मिलता है...

Jwalpa devi temple: Jwalpa devi temple in Uttarakhand
Image: Jwalpa devi temple in Uttarakhand (Source: Social Media)

देहरादून: शारदीय नवरात्र शुरू होने के साथ ही त्योहारों का सिलसिला शुरू हो गया है। देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा है। नवरात्र के ये 9 दिन, शक्ति की अराधना को समर्पित हैं। उत्तराखंड में भी ऐसे अनेक शक्तिपीठ है, जहां मां आदिशक्ति का निवास माना जाता है, इन्हीं में से एक है सिद्पीठ मां ज्वाल्पा देवी मंदिर। मां ज्वाल्पा देवी का मंदिर पौड़ी के कफोलस्यूं पट्टी के ग्राम अणेथ में पूर्व नयार के तट पर स्थित है। श्रद्धालुओं के लिए मंदिर के द्वार पूरे साल खुले रहते हैं। चैत्र और शारदीय नवरात्र में यहां विशेष पूजा-अर्चना होती है। विशेषकर अविवाहित कन्याएं सुयोग्य वर की कामना लेकर आती हैं। मंदिर में मां ज्वाल्पा अखंड ज्योत के रूप में गर्भ गृह में विराजमान हैं। मंदिर की स्थापना साल 1892 में हुई। स्व. दत्तराम अण्थवाल और उनके बेटे बूथाराम ने मंदिर की स्थापना की थी। केदारखंड के मानसखंड में भी इस सिद्धपीठ का उल्लेख मिलता है।

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कहा जाता है कि इस जगह पर दानवराज पुलोम की पुत्री शचि ने भगवान इंद्र को वर रूप में पाने के लिए मां भगवती की कठोर तपस्या की थी। शचि की तपस्या से मां भगवती प्रसन्न हुईं और शचि को इंद्र की अर्धांगिनी बनने का आशीर्वाद दिया। मंदिर परिसर में यज्ञ कुंड भी है। मां के धाम के आस-पास हनुमान मंदिर, शिवालय, कालभैरव मंदिर और मां काली मंदिर भी स्थित है। ज्वाल्पा मंदिर में श्रद्धालुओं की अटूट आस्था है। इस जगह का ऐतिहासिक महत्व भी है। प्राचीन काल में इसे अमकोटी के रूप में जाना जाता था। कफोलस्यूं, खातस्यूं, मवालस्यूं, रिंगवाड़स्यूं, घुड़दौड़स्यूं, गुराड़स्यूं पट्टियों के गांवों से आने वाले ग्रामीण यहां ठहरा करते थे। सिद्धपीठ ज्वाल्पा देवी मंदिर पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे मुफीद है। मंदिर पौड़ी मुख्यालय से करीब 30 किलोमीटर और कोटद्वार से लगभग 72 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कोटद्वार से सतपुली और पाटीसैंण होते हुए मंदिर तक पहुंचा जा सकता है, जबकि श्रीनगर से जाने वाले श्रद्धालु पौड़ी और परसुंडाखाल होते हुए मां ज्वाल्पा के धाम पहुंच सकते हैं।