उत्तराखंड देहरादूनDaughter of farmer became engineer

धन्य है देवभूमि के गरीब किसान की ये लाडली, हालातों से हारी नहीं और बन गई इंजीनियर

लीला के माता-पिता किसान हैं, हायर एजुकेशन के दौरान लीला को कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा, पर उन्होंने हार नहीं मानी...

Leela chauhan: Daughter of farmer became engineer
Image: Daughter of farmer became engineer (Source: Social Media)

देहरादून: पहाड़ की प्रतिभावान बेटी लीला चौहान को बधाई। लीला ने हायर एजुकेशन के लिए मिली स्कॉलरशिप से पीएचडी इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की है। जौनसार की रहने वाली लीला की गरीब परिवार के किसान की बेटी हैं। जनजातीय क्षेत्र जौनसार बावर में एक सुदूरवर्ती गांव है चामा, लीला चौहान इसी गांव की रहने वाली हैं। बचपन गरीबी में बीता। लीला जानती थीं कि अगर अपनी परिस्थितियां बदलनी हैं तो पढ़ाई जारी रखनी होगी। माता-पिता गांव में खेतीबाड़ी कर किसी तरह बेटी की मदद करते रहे। लीला ने भी उन्हें निराश नहीं किया। छठवीं में पढ़ाई के दौरान लीला का चयन नवोदय स्कूल के लिए हो गया। पढ़ाई में अव्वल थीं इसीलिए हायर एजुकेशन के लिए स्कॉलरशिप पा गईं। साल 2018-19 में पीएचडी के दौरान ट्रेनिंग के लिए लीला चौहान विदेश दौरे पर फ्रांस गई। लीला तीन बार नेट क्वालिफाई कर चुकी हैं।

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उत्तराखंड काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने उन्हें युवा साइंटिस्ट के खिताब से भी नवाजा है। लीला ने जिस विषय में पीएचडी की है, आपको उसके बारे में भी जानना चाहिए। उन्होंने चीड़ की पत्तियों से बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग मेटीरियल डेवलप कर, इसे मैकेनिकल और फिजिकल प्रॉपर्टीज के तहत उपयोग में लाने का फार्मूला तैयार किया है। चीड़ की पत्तियां यानि पिरूल, जंगलों में लगने वाली आग की बड़ी वजह हैं, लीला का रिसर्च पिरूल के बेहतर इस्तेमाल का विकल्प दे सकता है। लीला को पढ़ाई के साथ-साथ खेलों और एडवेंचर स्पोर्ट्स में भी रुचि है। वो दो बार नेशनल खेल चुकी हैं। लीला अब अपने ज्ञान का इस्तेमाल महिलाओं के उत्थान के लिए करना चाहती हैं। वो कहती हैं कि जौनसार में महिलाओं का सम्मान है, लेकिन आबादी के हिसाब से प्रतिनिधित्व कम है। लीला महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए काम करना चाहती हैं, ताकि वो आत्मनिर्भर बनें।