उत्तराखंड पिथौरागढ़Retired soldier did organic vegetable cultivation on mountain

पहाड़ के सुरेश..पहले बॉर्डर पर देशसेवा की, अब खेती से दे रहे हैं नौजवानों को रोजगार

रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर पूर्व सैनिक शहरों में बस जाते हैं, सुरेश भी अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ या हल्द्वानी जा सकते थे, पर नहीं गए...

Suresh chandra neolia: Retired soldier did organic vegetable cultivation on mountain
Image: Retired soldier did organic vegetable cultivation on mountain (Source: Social Media)

पिथौरागढ़: उत्तराखंड देवभूमि है, साथ ही सैन्य भूमि भी। यहां के ज्यादातर लोग सेना में हैं, जो लोग सेना से रिटायर हो जाते हैं, वो भी अपनी जमीन, अपने देश की सेवा के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। ऐसे ही पूर्व सैनिकों में से एक हैं सुरेश चंद्र नियोलिया, जिन्होंने अपनी मेहनत से एक गांव की तस्वीर बदल दी। फौज से रिटायर होने के बाद सुरेश चंद्र गांव में खेती करते हैं। जिससे उन्हें अच्छी कमाई हो रही है, साथ ही गांव के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है। पिथौरागढ़ में एक जगह है गणाईगंगोली। सुरेशचंद्र इसी क्षेत्र के न्यौलिया सेरा गांव में रहते हैं। उनकी पूरी जवानी सेना के नाम रही। युवा होते ही सेना में भर्ती हो गए थे। रिटायरमेंट के बाद ज्यादातर पूर्व सैनिक शहरों में बस जाते हैं। सुरेश भी अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ या हल्द्वानी जा सकते थे, पर नहीं गए।

ये भी पढ़ें:

यह भी पढ़ें - उत्तराखंड: ठंड से सब बेहाल, मसूरी में अतिरिक्त फोर्स तैनात.. जानिए अलग-अलग जगहों का तापमान
अपने पैतृक गांव को खाली देख उनका दिल बहुत दुखता था। रोजगार ना होने के चलते गांव के घर एक-एक कर खाली हो रहे थे। ऐसे में उन्होंने गांव में रहकर ही कुछ करने की ठानी। सुरेशचंद्र ने देखा कि गांव के बाजारों में हल्द्वानी से आई साग-सब्जियां पहुंचती हैं। गांव में इनका उत्पादन नहीं हो रहा था। खेत बंजर हो रहे थे। ये देख सुरेशचंद्र ने गांव में खेती करने की ठानी। उन्होंने गांव में ऑर्गेनिक खेती का काम शुरू कर दिया। रिजल्ट अच्छे रहे तो गांव के बेरोजगार लोगों को खेतों में काम भी दिया। आज सुरेशचंद्र हर दिन 50 किलो से ज्यादा साग-सब्जियों की सप्लाई करते हैं। ताजी सब्जियां लोगों के घर तक पहुंचाई जाती हैं। सुरेशचंद्र के प्रयास ने गांव वालों की सोच भी बदली है। अब ग्रामीण गांव में ही खेती कर रोजगार पैदा कर रहे हैं। सुरेश नियोलिया को गांव वालों ने अपना प्रधान भी बनाया है, ताकि वो क्षेत्र में खेती और रोजगार की संभावनाओं को बढ़ाएं।