उत्तराखंड पिथौरागढ़Hargovind bhatt made agriculture the basis of progress at pithoragarh

स्वरोजगार की मिसाल बना देवभूमि का ये बुजुर्ग किसान, खेती के जरिए रोका पलायन

जिन लोगों को ये लगता है कि पहाड़ में रहकर कुछ नहीं किया जा सकता, उन्हें पिथौरागढ़ के किसान हरगोविंद भट्ट को देखना चाहिए। जिन्होंने विषम परिस्थियां होने के बावजूद खेती को अपनाया और सफलता की नई कहानी लिखी...

Pithoragarh hargovind bhatt: Hargovind bhatt made agriculture the basis of progress at pithoragarh
Image: Hargovind bhatt made agriculture the basis of progress at pithoragarh (Source: Social Media)

पिथौरागढ़: कई बार लगता है कि पलायन मजबूरी से ज्यादा बहाना है, जिस गांव-पहाड़ में हमने अपना बचपन गुजारा, हमारे बुजुर्गों ने अपनी पूरी जिंदगी गुजारी, वो अचानक सबको चुभने लगा है। पहाड़ में कुछ नही रखा...इन दिनों हर किसी की जुबां पर बस यही शब्द होता है। जिन लोगों को सचमुछ ये लगता है कि पहाड़ में रहकर कुछ नहीं किया जा सकता, उन्हें पिथौरागढ़ के किसान हरगोविंद भट्ट को देखना चाहिए। जिन्होंने विषम परिस्थियां होने के बावजूद खेती को अपनाया और सफलता की नई कहानी लिखी। आज उन्हें देखकर गांव के दूसरे लोग भी खेती-किसानी को अपना रहे हैं। डीडीहाट के चौबाटी क्षेत्र में एक गांव है खैतोली, हरगोविंद भट्ट इसी गांव में रहते हैं। सालों पहले सुविधाओं की कमी के चलते गांव के लोग पलायन कर रहे थे, पर हरगोविंद को पर्यावरण से, अपने गांव से लगाव था, इसीलिए उन्होंने यहीं रहकर कुछ करने की ठानी। 30 साल पहले उन्होंने अपनी साठ नाली जमीन पर खेती शुरू की। और आज उनकी बगिया में 23 प्रजाति की वनस्पतियां महक रही हैं। हर जगह सिर्फ जड़ी-बूटी की खुशबू बसी है।

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इस बगिया में नींबू, अखकोट, सुरई, शिलिंग, पीपल, बांज और रामबांस के पेड़ हैं। रामबांस से लोग कई तरह के उत्पाद बनाते हैं। मानसून में वन विभाग भी हरगोविंद भट्ट से पौधारोपण के लिए पौधे खरीदता है। आज हरगोविंद भट्ट की उम्र 76 साल हो चुकी है, लेकिन इस उम्र में भी वो अपने खेतों को, अपने बनाए जंगल को सहेजने में जुटे हैं। वो मंदिर परिसरों, स्कूलों और सरकारी अस्पतालों के लिए पौधे दान करते हैं, ताकि लोग खेती और पर्यावरण के महत्व को समझें। इन्हें बचाने का प्रयास करें। बुजुर्ग हरगोविंद भट्ट की देखादेखी अब गांव के दूसरे लोग भी खेती-किसानी को अपनाने लगे हैं। वो युवाओं में स्वरोजगार और पर्यावरण संरक्षण की अलख जगा रहे हैं। हरगोविंद कहते हैं कि गांव-घर से दूर जाकर नौकरी करने की बजाय अगर युवा खेती को अपनाएं तो पहाड़ की सबसे बड़ी समस्या यानि पलायन पर अंकुश लग सकता है। इससे हमारी संस्कृति बचेगी, हमारे गांव बचेंगे साथ ही हमारा पर्यावरण भी बचेगा।