उत्तराखंड देहरादूनKishor upadhyay on bharadisain

उत्तराखंड: राजधानी गैरसैंण के मुद्दे पर कांग्रेस नेता किशोर उपाध्याय की दो टूक, बताई दमदार बातें

छोटे प्रदेश में दो-दो राजधानियों का मतलब क्या है। क्या यह व्यावहारिक है? अगर दो राजधानियां भी बननी हैं तो भराड़ीसैंण ग्रीष्मक़ालीन राजधानी क्यों होनी चाहिये?

Kishor upadhyay: Kishor upadhyay on bharadisain
Image: Kishor upadhyay on bharadisain (Source: Social Media)

देहरादून: प्रदेश कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और वनाधिकार आंदोलन के प्रणेता किशोर उपाध्याय ने कहा है कि भराड़ीसैंण को ग्रीष्मक़ालीन राजधानी बनाये जाने का राज्य सरकार का विचार दासता से ग्रस्त मानसिकता है। उपाध्याय ने कहा कि राज्य गठन के बीस साल पूरे होने वाले हैं और अभी तक प्रदेश की राजधानी का मुद्दा ही नहीं सुलझ पाया है। किशोर उपाध्याय का कहना है कि इतने छोटे प्रदेश में दो-दो राजधानियों का मतलब क्या है। क्या यह व्यावहारिक है? अगर दो राजधानियां भी बननी हैं तो भराड़ीसैंण ग्रीष्मक़ालीन राजधानी क्यों होनी चाहिये? शीतकालीन क्यों नहीं? उपाध्याय ने सवाल उठाया और कहा कि क्या हम आज भी ग़ुलाम हैं। जिस तरह अंग्रेज गर्मी सहन न करने के कारण गर्मियों में मसूरी, नैनीताल, शिमला या कश्मीर चले जाते थे, क्या आज के हुक्मरान भी उसी मानसिकता से ग्रस्त हैं?

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किशोर उपाध्याय ने कहा कि क्या हुक्मरान ठण्ड में पर्वतीय क्षेत्र के राज्यवासियों को ठण्ड से बचाने के लिये मैदान में रहने की व्यवस्था करेंगे और तराई/मैदान के निवासियों को गर्मी से बचाने के लिये पहाड़ पर चढ़ाने का काम करेगें। हुक्मरान मौसम की मार से बच सकें, इसलिये तो राज्य की राजधानियाँ नहीं बननी चाहिये।
किशोर उपाध्याय ने कहा कि राज्य आन्दोलन की भावना के अनुसार राज्य की राजधानी तो पर्वतीय क्षेत्र में होनी चाहिये। राज्य गठन के वक़्त राज्य के हितों का ध्यान नहीं रखा गया, हाईकोर्ट नैनीताल में, वहाँ भी परेशानियों का अम्बार है। इधर, सारी जल सम्पदा पर उत्तरप्रदेश का अधिकार है। हमारी 40% से अधिक भूमि दूसरे राज्य के अधिकार में है। सत्ताधारियों ने उत्तराखंड को मकड़जाल में फ़ँसा दिया है।
उपाध्याय ने कहा कि एक-आध दिन का विधानसभा सत्र भराड़ीसैण में आहूत कर राज्य का भला नहीं होने वाला। यदि सरकार की मंशा में खोट नहीं है तो वह भराड़ीसैंण को राज्य की स्थायी राजधानी घोषित करे और हमें भी “ग़ैरसैंण” के बजाय भराड़ीसैंण कहना चाहिये। क्योंकि गैरसैंण में तो कुछ भी नहीं बन रहा।