उत्तराखंड नैनीतालStory of Veer Jawan Lance naik Kailash Chandra Bhatt

उत्तराखंड का वीर सपूत, शरीर पर 4 गोलियां लगी..फिर भी करता रहा दुश्मनों का सामना

कारगिल युद्ध के दौरान लांस नायक कैलाश चंद्र भट्ट ने अदम्स साहस का परिचय दिया। युद्ध के दौरान उनके कंधे पर 4 गोलियां लगी थीं, लेकिन वो आतंकियों से लड़ते रहे।

Kargil War: Story of Veer Jawan Lance naik Kailash Chandra Bhatt
Image: Story of Veer Jawan Lance naik Kailash Chandra Bhatt (Source: Social Media)

नैनीताल: कारगिल युद्ध में इतिहास रचने वाले रणबांकुरों का देश हमेशा कर्जदार रहेगा। कारगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ पर ऑपरेशन विजय के नायकों को याद किया जा रहा है। आज राज्य समीक्षा आपको कारगिल युद्ध के ऐसे हीरो से मिलवाने जा रहा है, जिन्होंने युद्ध के दौरान 4 गोलियां लगने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। इनका नाम है लांस नायक कैलाश चंद्र भट्ट। हल्द्वानी के रहने वाले कैलाश चंद्र भट्ट कारगिल युद्ध के दौरान 15 कुमाऊं रेजीमेंट में तैनात थे। कारगिल युद्ध के दौरान लांस नायक कैलाश चंद्र भट्ट ने अदम्स साहस का परिचय दिया। युद्ध के दौरान उनके कंधे पर 4 गोलियां लगी थीं। उनका शरीर लहूलुहान था, लेकिन वो असहनीय दर्द में होने के बाद भी आतंकियों से लोहा लेते रहे। इस दौरान उन्होंने 6 से ज्यादा आतंकियों को मार गिराया।

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कारगिल युद्ध ने कैलाश चंद्र भट्ट को जो जख्म दिए, उसके निशान आज भी उनके कंधों पर देखे जा सकते हैं। ऑपरेशन विजय के दौरान लांस नायक कैलाश चंद्र भट्ट मच्छल सेक्टर में तैनात थे। बात 6 जून 1999 की है। भारतीय सेना सीमा पार से आए आतंकियों को खदेड़ रही थी। इसी दौरान आतंकियों ने एके-47 से फायरिंग शुरू कर दी। एक के बाद एक 4 गोलियां आकर कैलाश चंद्र भट्ट के कंधे पर लगी, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लड़ाई के दिनों को याद करते हुए कैलाश चंद्र भट्ट बताते हैं कि उनकी बटालियन पहाड़ से नीचे थी, और दुश्मन पहाड़ी के ऊपर थे। तभी दुश्मनों ने उनकी बटालियन पर हमला बोल दिया। आगे भी पढ़िए इस जांबाज की कहानी

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दुश्मन को सामने देख उन्होंने अपने साथियों संग मोर्चा संभाल लिया और जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी। इसी बीच एके-47 की चार गोलियां उनके कंधे में लगी, जिसमें 1 गोली कंधे से बाहर निकल गई और तीन गोली फंसी रही। कैलाश के कंधे से खून रिसने लगा, लेकिन वो आतंकियों से लड़ते रहे और इस दौरान 6 से ज्यादा आतंकी मार गिराए। बाद में सेना ने उन्हें एयरलिफ्ट कर इलाज के लिए अस्पताल भेजा। कैलाश चंद्र कहते हैं कि अगर उनको मौका मिले तो वो आज भी पाकिस्तान को धूल चटा सकते हैं। ऑपरेशन विजय में अहम योगदान देने वाले कैलाश चंद्र भट्ट अब सैनिक कल्याण एवं पुनर्वास कार्यालय में अपनी सेवा दे रहे हैं। उनका कहना है कि कारगिल युद्ध के दौरान उन्होंने अपने कई साथियों को खो दिया। अपनों से बिछड़ने का दर्द उन्हें हमेशा सताता है। साथियों की शहादत उन्हें हमेशा याद रहेगी।