चमोली: सोच अगर पॉजिटिव हो और लगन सच्ची, तो कुछ भी असंभव नहीं। अब चमोली के रहने वाले प्रदीप कुंवर को ही देख लें, जिन्होंने नामुमकिन से लगने वाले काम को मुमकिन कर दिखाया है। प्रदीप कुंवर ने अपने खेतों में चंदन का जंगल तैयार किया है। जी हां, वही चंदन जो आमतौर पर दक्षिण भारत में पाया जाता है। इसके उत्तराखंड के पहाड़ में पनपने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। लेकिन प्रदीप ने इस असंभव से लगने वाले लक्ष्य को हासिल कर दिखाया। प्रदीप कुंवर चमोली जिले के कर्णप्रयाग ब्लॉक में स्थित तेफना गांव में रहते हैं। जिस वक्त क्षेत्र के लोग पारंपरिक खेती कर रहे थे, उस वक्त प्रदीप ने कुछ हटकर करने की सोची। उन्होंने अपने खेत में चंदन का जंगल बनाने का सपना देखा और तीन साल की कठिन मेहनत से अपने सपने को सच कर दिखाया।
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प्रदीप कुंवर पहाड़ के शिक्षित युवा हैं। एमए, बीएड कर चुके हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों के लिए कई टेस्ट दिए, लेकिन सफल नहीं हुए। तब प्रदीप ने स्वरोजगार करने की ठानी और आज उनकी मेहनत की पूरे प्रदेश में चर्चा हो रही है। ग्वाड़ तोक में रहने वाले 34 साल के प्रदीप ने बीएड किया है। उनकी गांव में पुश्तैनी जमीन है। साल 2017 में अल्मोड़ा जिले के भिकियासैंण नर्सरी से प्रदीप ने चंदन के पौधे खरीदे और इन्हें अपने खेतों में लगाया। प्रदीप ने करीब 3 नाली यानी 6480 वर्ग फीट भूमि पर 120 चंदन के पौधों का रोपण किया। तीन साल की कड़ी मेहनत के बाद आज प्रदीप के खेत में 40 सफेद चंदन के पेड़ जंगल की शक्ल में लहलहा रहे हैं।
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चंदन के पेड़ों पर बीज आने भी शुरू हो गए हैं। अब प्रदीप इन बीजों से पौध उगाकर उनकी बिक्री करेंगे। सफेद चंदन की एक-एक पौध की कीमत 300 रुपये से अधिक है। सफेद चंदन मंदिरों में पूजा, टीका, सौंदर्य प्रसाधन, क्रीम और दवा बनाने में इस्तेमाल होता है। प्रदीप बताते हैं कि गांव में चंदन की खेती करना आसान नहीं था। शुरुआत में गांव के लोग उन्हें बेवकूफ कहते थे। उनका मजाक उड़ाते थे। कहते थे कि चंदन का पेड़ तो सिर्फ दक्षिण भारत में पनप सकता है, लेकिन आज पहाड़ी प्रदेश में चंदन की खेती करने वाले इसी युवक की लोग मिसाल देते हैं। अपने बेटों को उनसे प्रेरणा लेने की सीख देते हैं।