उत्तराखंड टिहरी गढ़वालSurkanda Devi Temple of Tehri Garhwal

नवरात्र स्पेशल: देवभूमि का वो शक्तिपीठ, जहां देवराज इन्द्र ने साधना कर पाया खोया हुआ साम्राज्य

उत्तराखंड के टिहरी के जौनपुर पट्टी में सुरकुट पर्वत पर स्थित है सुरकंडा देवी का मंदिर। इस मंदिर से लोगों के अटूट विश्वास के साथ कई मान्यताएं भी जुड़ी हैं

Surkanda Devi: Surkanda Devi Temple of Tehri Garhwal
Image: Surkanda Devi Temple of Tehri Garhwal (Source: Social Media)

टिहरी गढ़वाल: त्योहारों की शुरुआत हो चुकी है। अब आने वाले कुछ दिन हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों की धूम रहेगी। बीते शनिवार से हिंदू धर्म के सबसे पवित्र माने जाने वाले त्यौहार नवरात्रों की भी शुरुआत हो चुकी है। मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर जिसको सुरकंडा देवी का मंदिर बोला जाता है, उत्तराखंड के टिहरी के जौनपुर पट्टी में सुरकुट पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर के दर्शन करने से पहले चलिए आपको पौराणिक कथाओं के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी की एक प्रचलित कथा के बारे में बताते हैं। तप की देवी यानी कि ब्रह्मचारिणी को मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या करने के रूप में जाना जाता है। इसी वजह से उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा था। शिव को प्राप्त करने की तीव्र इच्छा मन में पाले मां ब्रह्मचारिणी ने सालों तक अन्न-जल का त्याग कर तपस्या की। तप की देवी कहे जाने वाली मां ब्रह्मचारिणी ने अपने इच्छा शक्ति और मजबूत इरादों से हमें यह संदेश दिया कि जीवन में बिना तपस्या के सफलता प्राप्त करना असंभव है।

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सुरकंडा मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान शिव जब सती माता के विक्षत शव को लेकर हिमालय की ओर जा रहे थे तो इसी स्थान पर माता का सिर गिर गया था। तब से यह स्थान सुरकंडा देवी सिद्ध पीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ है। वहीं अन्य मान्यताओं को देखें तो उसके अनुसार सुरकंडा मंदिर को भगवान इंद्र से जोड़कर भी देखा जाता है। बता दें कि स्कंद पुराण के अंदर यह उल्लेख है कि राजा इंद्र ने यहां आकर मां की आराधना कर अपना खोया हुआ साम्राज्य वापस प्राप्त कर लिया था। इसी के कारण ऐसा माना जाता है कि जो भी सच्चे मन से इस मंदिर में माता के दर्शन करने आता है मां उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं। ब्रह्मचारिणी देवी का मंदिर टिहरी के जौनपुर पट्टी में सुरपुट पर्वत पर स्थित है। इस मंदिर के अंदर जाने पर एक अलग ही किस्म की अनुभूति होती है। मंदिर में आकर अद्भुत शांति और भक्ति का एहसास भी होता है। मान्यता तो यह भी है कि इस मंदिर में एक बार जाने के बाद पिछले सात जन्मों के सभी पापों से मुक्त हो सकते हैं।

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ब्रह्मचारिणी मां के मंदिर सुरकंडा देवी के दरबार से बद्रीनाथ, केदारनाथ, तुंगनाथ गौरीशंकर, नीलकंठ आदि समेत कई पर्वत श्रृंखलाएं दिखाई देती हैं। मां सुरकंडा देवी के कपाट साल के सभी दिन श्रद्धालुओं के लिए खुले रहते हैं। गंगा दशहरे, नवरात्रि के मौके पर मां के दर्शन करने का विशेष महत्व माना गया है। गंगा दशहरे पर यहां विशाल मेला लगता है और दूर-दूर से लोग दर्शन करने मंदिर पहुंचते हैं। सुरकंडा देवी मंदिर की खास बातों में से एक अहम बात बताई जाती है कि भक्तों को प्रसाद के रूप में रौंसली की पत्तियां दी जाती हैं जो औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। वहीं धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इन पत्तियों को घर में रखने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। हर साल खासकर कि नवरात्रों के इन शुभ दिनों में भारी संख्या में लोग सुरकंडा देवी मंदिर में मां ब्रह्मचारिणी के दर्शन करने आते हैं।