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उत्तराखंड: भयानक सैलाब ला सकता है ये ग्लेशियर..यहां जमा है तबाही का मलबा

विशेषज्ञों की मानें तो सरकार को गंगोत्री ग्लेशियर के पास जमा मलबे को लेकर पुख्ता कदम उठाने की जरूरत है, ताकि उत्तराखंड को चमोली जैसी आपदा से बचाया जा सके।

Uttarakhand Glacier: Gomukh Glacier Uttarakhand
Image: Gomukh Glacier Uttarakhand (Source: Social Media)

उत्तरकाशी: उत्तराखंड के चमोली में त्रासदी ने कई लोगों की जिंदगी को निगल लिया। यहां हर दिन सड़े-गले शव मिल रहे हैं। अब तक 62 शव मिल चुके हैं, जबकि 142 लोग लापता हैं। रैणी गांव के लोग अब भी सदमे से उबर नहीं पाए हैं। सिर्फ रैणी ही नहीं दूसरे हिमालयी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी लगता है कि क्षेत्र में फिर से तबाही आएगी और ये डर बेवजह नहीं है। पर्यावरणविदों की मानें तो चमोली की ऋषिगंगा नदी में ग्लेशियर टूटने से मची तबाही जैसी स्थिति फिर से पैदा हो सकती है। उत्तरकाशी में गंगोत्री ग्लेशियर अन्य ग्लेशियरों के मुकाबले तेजी से पिघल रहा है। पर्यावरणविद इसे लेकर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। सरकार को सचेत भी कर रहे हैं। विशेषज्ञों की मानें तो सरकार को भी इस ओर पुख्ता कदम उठाने की जरूरत है, ताकि उत्तराखंड को चमोली जैसी आपदा से बचाया जा सके। गंगोत्री ग्लेशियर से जुड़े डर के पीछे एक और वजह है। ये वजह भी जान लें।

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दरअसल यहां वर्ष 2017 में ग्लेशियर टूटने से आया भारी मलबा गोमुख के आसपास जमा है, जो कभी भी भारी बारिश या ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने पर आपदा की स्थिति पैदा कर सकता है। नदी एवं पर्यावरण संरक्षण अभियान से जुड़े पर्यावरणविद् सुरेश भाई कहते हैं कि संवेदनशील हिमालय पर जिस तरह का विकास थोपा जा रहा है, वह जानलेवा साबित हो रहा है। ऋषिगंगा में मची तबाही इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। परियोजना के निर्माण से पहले पर्यावरण एवं सामाजिक प्रभाव आकलन रिपोर्ट बनाई जाती है। ये रिपोर्ट अंग्रेजी भाषा में तैयार होती है, जिसे ग्रामीण न तो समझ पाते हैं और न ही अपना विरोध दर्ज करा पाते हैं। इस तरह तमाम दुष्प्रभावों के बावजूद परियोजनाओं को स्वीकृति मिल जाती है। मैदानी मानकों की तर्ज पर हिमालयी क्षेत्र में किए जा रहे निर्माण कार्य त्रासदी का कारण बन रहे हैं। विकास के नाम पर पहाड़ में बन रहे बांध और सुरंग विकास की बजाय आपदा को न्योता देने वाले साबित हो रहे हैं, इनका निर्माण रोका जाना चाहिए।